पाठकों के लिए एक अनिवार्य सलाह : एक योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक आपके शारीरिक एवं मानसिक लक्षणों आदि को जानने के बाद आपके लिए होम्योपैथी की सही दवाई, सही शक्ति में निर्धारित करते हैं। अत: किसी योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक की सलाह के बिना होम्योपैथिक दवाईयों का सेवन करने से सही परिणाम सामने नहीं आते हैं और होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति बदनाम होती है!-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

बुधवार, 24 अप्रैल 2013

मोटापे के लिए होम्योपैथी

मोटापे के लिए होम्योपैथी

होम्योपैथिक चिकित्सा मोटापा एवं उसके विभिन्न पहलुओं का उपचार करता है। इन दवाओं से पाचन क्रिया सुदृढ़ होती है, चयापचय की क्रिया अच्छी होती है, जिसकी वजह से मोटापा कम होता है।

वजन घटाने के लिए कई लोग होम्योपैथी उपचार का सहारा लेते हैं।

वजन घटाने के लिए होम्योपैथिक उपचार को सुरक्षित माना गया है एवं यह सभी उम्र के लोगों के लिए कारगर एवं उपयुक्त होता है, क्योकि ये बहुत ही कोमल और पतले होते हैं और आमतौर पर इनका शरीर पर कुप्रभाव नहीं होता।

होम्योपैथिक उपचार बहुत ही प्रभावी होते हैं

आप वजन घटाने के लिए यदि कोई अन्य प्राकृतिक पूरक या उपचार ले रहे हैं तो भी आप होम्योपैथिक दवाइयां ले सकते हैं, क्योंकि यह दूसरे उपचार में न तो अवरोध पैदा करता है न हीं बुरा प्रभाव डालता है।

वजन घटाने के लिए होम्योपैथी में कई प्रभावी उपचार उपलब्ध हैं। वजन घटाने से पूर्व एक महत्वपूर्ण बात पर विचार अवश्य कर लेना चाहिए कि आप कितने मोटे हैं तथा आपको कितना वजन घटाने की जरूरत है। इसके लिए आपको होम्योपैथिक चिकित्सक से मिलकर वजन कम करने के सबसे अच्छे विकल्प का परामर्श लेना चाहिए साथ ही उपचार शुरू करने से पूर्व आपको यह भी जान लेना चाहिए कि आपको अपने जीवन शैली में क्या-क्या बदलाव लाना है।

वजन घटाने के लिए कुछ सबसे आम और प्रभावी उपचार निम्न प्रकार के होते हैं:
एंटीमोनिअम क्रूडम Antimonium Crudum
अर्जेन्टम नाईत्रीकम Argentum Nitricum
केलकेरिया कार्बोनिका Calcarea Carbonica
कोफिया क्रूडा Coffea Cruda
केपसिकम Capsicum
सावधानी : एक पेशेवर होम्योपैथिक चिकित्सक आपके शरीर के अद्वितीय पैटर्न एवं कार्य क्षमता इत्यादि को ध्यान में रखकर आपके लिए उपचार निर्धारित करते हैं। यदि आप घर पर अपना वजन कम करने के लिए स्वयं होम्योपैथिक उपचार कर रहे हैं, और एक दो महीने में भी आपके वजन में कोई कमी नहीं आती तो आपको एक पेशेवर होम्योपैथिक चिकित्सक से मिलना चाहिए।

सोमवार, 22 अप्रैल 2013

एलर्जी

आजकल की प्रदूषणभरी और भाग दौड की जिन्दगी मे एलर्जी एक जाना पहचाना शब्द है. लगभग ९० प्रतिशत व्यक्ति किसी न किसी रुप से एलर्जी से ग्रसित है. किसी को दुध से नफरत है तो किसी को दही से या यूँ कहें उन्हें इन चीजों के खाने से कुछ विशेष लक्षण उत्पन्न होते है आजकल के शब्दों मे उन्हें दुध या दही से एलर्जी है.
एलर्जी कोई रोग न होकर एक शारीरिक और मानसिक प्रतिक्रिया है जो किसी खास वस्तु के सम्पर्क मे आने से उत्पन्न होती है. जिस वस्तु के सम्पर्क मे आने से यह प्रतिक्रिया होती है उसे उत्तेजक कारक कहते है. अप्राकृतिक खानपान, रहन- सहन के कारण या कभी कभी वंशानुगत भी एलर्जी होने के कारणों में है.

बचपन से ही वातानुकुलित कमरों मे रहने के कारण आजकल बच्चों मे मौसम के परिवर्तन के प्रति सहिष्नुता का अभाव देखा जा रहा है. मौसम का परिवर्तन उनका शरीर बर्दास्त नहीं कर पाता है और कई प्रकार के शारीरिक लक्षण उत्पन्न हो जाते है. यह भी एक प्रकार का एलर्जी ही है.

कुछ विशेष वस्तु जैसे घर का महीन धूल , कालीन का धूल , मकडे का जाल , उपलों का धुआँ , आदि कुछ एसी वस्तुएं है जिनसे बडे पैमाने पर लोगों को कुछ शारीरिक परेशानियाँ होने लगती हैं. जैसे दम फुलना, नाक और आँख से पानी आने लगना, लगातार छीकें आने लगना आदि जिसका तत्काल ईलाज आवश्यक है.

हालांकि होम्योपैथिक दवाओं का चुनाव रोगी की प्रकॄति, उत्पन्न शारीरिक और मानसिक लक्षण के साथ साथ मियाज्म के आधार पर किया जाता है फिर भी किसी खास वस्तु (उत्तेजक कारक) से उत्पन्न एलर्जी के लिए निम्न दवा का व्यवहार कर लाभ उठा सकते है. नीचे का चार्ट देखें

धुल और धुएं से एलर्जी ---------------------- पोथोस पोटिडा
प्याज से से एलर्जी ---------------------- थुजा, एलियम सिपा
एण्टिवायोटिक दवाओं से एलर्जी ---------------- सल्फर
दुध से एलर्जी -------------------------------- ट्युवर्कोलिनम, सल्फर
दही से एलर्जी -------------------------------- पोडोफाइलम
मिठाई से एलर्जी ----------------------------- आर्जेन्टम नाईट्रिकम
चाय से एलर्जी ------------------------------- सेलेनियम
काफी से एलर्जी ------------------------------ नक्स वोमिका
किसी प्रकार का टीका लगाने से एलर्जी ----- --- थुजा
किसी प्रकार के मसालों से एलर्जी --------- --- नक्स वोमिका
लहसुन से एलर्जी --------------------------- फासफोरस
अचार से एलर्जी ----------------------------- कार्बो वेज
साधारण नमक से एलर्जी -------------------- नैट्रम म्युर
फलों से एलर्जी ------------------------------ आर्सेनिक
तम्बाकू से एलर्जी----------------------------- नक्स वोमिका
माँ के दुध से बच्चे को एलर्जी ---------------- साईलेशिया
आलुओं से एलर्जी ---------------------------- एलुमिना
सब्जियों से एलर्जी --------------------------- नैट्रम सल्फ
मछली से एलर्जी ----------------------------- आर्सेनिक
गर्म पेय पदार्थो से एलर्जी --------------------- लैकेसिस
ठंडे पेय पदार्थों से एलर्जी ---------------------- विरेट्रम एल्बम
किसी भी उत्तेजक कारक के कारण यदि --------- एपिस/आर्टिका युरेन्स
त्वचा के जलन खुजली होने लगे तो

किसी भी उत्तेजक कारक के कारण यदि --------- नक्स वोमिका/ हिस्टामिन
लगातार छींक आने लगे, नाक से
पानी आने लगे , नजले जैसा लक्षण उत्पन्न
होने पर
उक्त दवाओं के 200/1M पोटेन्सी मे 3 खुराक तीन दिनों तक (प्रतिदिन एक बार शुबह में) लेकर फिर प्रत्येक सप्ताह एक खुराक लेने पर लें आशातीत लाभ मिल सकता है..

मैने धुल और धुयें से होने बाली एलर्जी में एकोनाईट 3x, इपिकाक 3x, एन्टिम टार्ट की 3xतीनों का मिश्रण 3-3 बुन्द प्रत्येक घटें पर रोग की तीव्रता के आधार पर देकर काफी लाभ पाया है. रोग की तीव्रता घटने पर दवा देने का अन्तराल बढाते जाते है. बाद में दिन मे तीन बार

किसी भी कारण यदि अचानक छींक आने लगे, नाक और आँख से पानी आने लगे तो मैं पहले नक्स वोमिका -200 का एक खुराक यानी दो बुन्द साफ जीभ पर दे देता हुँ और उसके 30 मिनट के बाद एकोनाईट - 3x या 30 तीन चार खुराकें 15-15 मिनट के अंतराल पर देने पर आशातीत सफलता प्राप्त हुई है.

यदि किसी कारण से शरीर पर लाल लाल चकत्ते आ जाये जिसमे काफी जलन और खुजलाहट हो (मुख्यत: यह मौसम के परिवर्तन के कारण या किसी उत्तेजक कारक के सम्पर्क मे आने से होता है.) तो सल्फर-200 का एक खुराक देकर एक घंटे के बाद तीन चार खुराकें रस टक्स-200 का दें तीन तीन घंटे के अंतराल पर .

Posted by Ashokkumar Baranwal, ओन Monday, August 24, 2009

रविवार, 21 अप्रैल 2013

होम्योपैथिक चिकित्सा पध्दति का संक्षिप्त परिचय


होम्योपैथिक जैसी सशक्त चिकित्सा पध्दति का जन्म उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ मे जर्मनी के ख्याति प्राप्त चिकित्सक “डा0 सैमुएल हैनिमैन (1755-1843) के द्वारा स्व परीक्षण के आधार पर हुआ। यूरोप में उन दिनों मलेरिया महामारी का रूप ले रहा था, परम्परागत दवा कुनैन अपेक्षित रूप से कारगर नहीं हो रही थी, डा हैनिमैन ने सिन्कोना पेड़ की छाल का रस को स्वंय पर प्रयोग कर देखा और इससे उनके शरीर मे उत्पन्न लक्षणों को (मानसिक और शारीरिक) सविराम ज्वर और मलेरिया के मरीज के लक्षणों के सादृश्य पाया, इसी सिन्कोना का सूक्ष्म मात्रा उन लक्षणों वाला ज्वर को ठीक करने मे पूर्ण सक्षम था। यही प्रयोग डा0 हैनिमैन को और भी वनस्पतियों पर करने को प्रेरित किया और इस प्राकृतिक नियमावलंबित चिकित्सा प्रणाली का जन्म हुआ।

डा सैमुएल हैनिमैन ने स्वंय अपने एवं अपने परिवार के बच्चों, महिलाओं, दोस्तों पर दवाओं का मूल रुप मे प्रयोग कर, शरीर मे उत्पन्न होने बाले विभिन्न शारीरिक और मानसिक लक्षणों को लिपिबद्ध कराया। उन्होने पाया कि जिस औषधि के स्वस्थ शरीर में व्यवहार करने से जो लक्षण उत्पन्न होते है, बीमारी की अवस्था में उसी प्रकार के लक्षण रहने पर उसी औषधि की सुक्ष्म मात्रा का प्रयोग रोगमुक्त करने मे सक्षम होता है। इसी सिद्धान्त को-

सम: समं समयति (Similia-Simlibus-Curantur) कहते हैं।

एलोपैथिक चिकित्सा (Contraria Contraris) सिस्टम पर कार्य करती है। जैसे रोगी को कब्ज होने पर दस्त करने बाली दवा और दस्त होने पर कब्ज पैदा करने बाली दवा देकर रोगमुक्त किया जाता है।

होम्योपैथिक दवाईयाँ मानव जीवन के लिए ज्यादा उपयोगी हैं, क्योंकि इनका समस्त परीक्षण स्वस्थ मानव शरीर पर किया जाता है और एलोपैथिक मे दवाइयों का परीक्षण बिल्ली, चुहे, कुत्ते, मेढक आदि जानवरों पर किया जाता है। क्या जानवरों और मनुष्यों के मानसिक एवं शारीरिक लक्षण समान हो सकते है।

होम्योपैथिक सिस्टम का आविष्कार डा0 हैनिमैन को महात्मा हैनिमैन बना दिया। इस सिस्टम मे किसी रोग का वैसी दवा का चुनाव किया जाता, जिसमे रोग के समान लक्षण (Symptoms) उत्पन्न करने की क्षमता हो। चुनी हुई दवा को एक विशेष पद्धति से सूक्ष्मीकरण (Potentisation) किया जाता है। यह पोटेन्टाइज्ड दवा की सूक्ष्म मात्रा (1-2 बूंद) हमारे शरीर की अपनी प्राकृतिक रोग निवारक क्षमता (Vital Force) को उत्तेजित कर बिना कोई हानि के दीर्घकाल के लिए रोगमुक्त करती है।

Potentisation की तीन पद्धतियां प्रचलित है

1) दसवें क्रम की पद्धति–इस पद्धति मे मूल दवा का एक भाग और दस भाग अल्कोहल या Sugar of Milk मिला कर Potentise किया जाता है जिसे 1X कहते है। इसी तरह दवा की उच्चतर पोटेसीं तैयार की जाती है । 1X, 2X, 3X, 4X,6X,30X, 200X पोटेन्सी की दवाईयाँ बाजार मे उपलब्ध है।

2) सौवें क्रम की पद्धति-इस पद्धति मे मूल दवा का एक भाग और सौ भाग अल्कोहल मिला कर Potentise किया जाता है जिसे 1C कहते है। इसी तरह दवा की उच्चतर पोटेसीं तैयार की जाती है, जिसमे दवा की मात्रा सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होती जाती है। बाजार मे 3C, 6C, 30C, 200C, 1000 C(1M) , 10000C (10M) 100000C (1CM) पोटेन्सी की दवाईयाँ उपलब्ध है। अधिकांश चिकित्सक इसी क्रम की दवाईयाँ ज्यादा व्यवहार करते है।

3) पचास हजारवें क्रम की पद्धति-इस पद्धति मे मूल दवा का एक भाग और पचास हजार भाग अल्कोहल मिला कर Potentise किया जाता है, जिसे 0/1 कहते है। इसी तरह दवा की उच्चतर पोटेसीं 0/2,0/3 तैयार की जाती है, जिसमे दवा की मात्रा अत्यन्त सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होती जाती है। आजकल इस पोटेसीं की दवाईयाँ काफी चिकित्सक व्यवहार कर रहें है। यह 20 नंबर की गोली मे ही उपलब्ध है।

होम्योपैथिक क्यों

जब एलोपैथिक एवं आयुर्वेदिक जैसी और प्रमाणिक सशक्त चिकित्सा प्रणाली उपलब्ध है तो हम होम्योपैथिक क्यों अपनायें:-
1) सर्वप्रथम होम्योपैथिक शक्तिकृत दवायें बिल्कुल हानिरहित और बिना किसी प्रतिकूल प्रभाव के रोग को जड़ से मिटाने मे सक्षम है।
2) ये दवायें चुकिं रोगी के स्वयं के जीवनी शक्ति को ही उत्प्रेरित कर रोग से मुक्ति दिलाती है, मुख्य बीमारी के साथ साथ अन्य बीमारियाँ भी दुर करने मे सक्षम होती है।
3) होम्योपैथिक चिकित्सा मे कभी कभी वांछित (आवश्यक) सर्जरी भी अनावश्यक हो जाती है। विशेषकर "पथरी, ट्युमर, घेघा, नाक के अन्दर माँस बढना, प्रोस्टेट ग्लैण्ड का बढना, टांसिलाइटिस, हड्डी का बढना आदि। इससे न सिर्फ मेहनत से क्माये पैसों की बचत होती हैं वरन सर्जरी के दुश्प्रभावों से भी बचाव होता है।
4) होम्योपैथिक में कई बीमारियों का रोग प्रतिरोधक दवायें उपलव्ध है जो रोग के फैलने की अवस्था में ,स्वस्थ शरीर में रोग का आक्रमण नही होने देता है। क्रुप खासी ,मिजल्स, टीट्नस,पथरी आदि।
5) ये दवायें मीठी मीठी चीनी की गोलियों मे कुछ बुन्दें डाल कर दी जाती, छोटे छोटे बच्चे भी बड़े प्रेम से खा लेतें हैं।
6) होम्योपैथिक चिकित्सा अन्य किसी भी चिकित्सा पद्धति से काफी सस्ती है, इसमें दवा की न्युन से न्युनतन मात्रा होती है।
7) सिर्फ इसी चिकित्सा पद्धति मे रोगी के शारीरिक के साथ साथ मानसिक लक्षणों का भी विश्लेषण्किया जाता है जिससे रोग को जड़ से मिटाने मे सफलता मिलती है।
8) पुराना से पुराना रोग यहाँ तक कि वंशगत बीमारियाँ भी छोटी छोटी मीठी होम्योपैथिक की गोलियों से समाप्त होती है।
9) आज होम्योपथिक सिस्टम भी दवाओं के मामले में भी काफी धनी है, करीब ढाई हजार से भी अधिक दवायें यहाँ उपलब्ध है। आजकल इसके सदृश अन्य चिकित्सा पद्धति जैसे
डा0 सुस्लर (Dr. W. H. SCHUESSLER) का बायोकेमिक,
जो कि होम्योपैथिक के समं सम: समयति के सिद्धांत पर कार्य करती है , होम्योपथिक चिकित्सा पद्धति मे समाहित होकर इसको और समृद्ध किया है।
10) होम्योपैथिक दवाओं का परीक्षण (Proving) समकालीन नामी एलोपैथ डाक्टरों के द्वारा स्वस्थ मानव शरीर पर (स्वय, रिस्तेदारो और दोस्तों) किया गया है और शारीरिक के साथ साथ मानसिक लक्षणों का विस्तृत विश्लेषण किया गया है जो कि आज भी पूरी तरह प्रासागिंक है।
यह मानव शरीर को पूर्ण रोगमुक्त करने मे सक्षम है।
11) होम्योपैथिक दवायें जानवरों पर भी काफी असरकारी है।
Monday, July 13, 2009

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

होम्योपैथी के कुछ मौलिक सिद्धान्त

होम्योपैथी के कुछ मौलिक सिद्धान्त :-

1-लक्षणों का मिलान : स्वस्थ व्यक्ति को होम्योपैथिक दवाई देने पर जो मानसिक एवं शारीरिक लक्षण उत्पन्न होते हैं, उन लक्षणों वाले अस्वस्थ व्यक्ति को वही औषधि उचित शक्ति में दी जाये तो उस व्यक्ति के रोग के लक्षण दूर हो जाते हैं और रोगी रोगमुक्त होकर स्वस्थ हो जाता है।

2-दवाईयों का सिद्धीकरण जानवरों पर नहीं बल्कि इंसानों पर : होम्योपैथिक दवाईयों का सिद्धीकरण  (परीक्षण) स्वस्थ व्यक्तियों पर किये जाते हैं, न कि मूक जानवरों (जैसे-मेढक, चूहे, खरगोश आदि) पर, इसलिये स्वस्थ व्यक्ति पर होम्योपैथिक दवाईयों के मानसिक एवं शारीरिक प्रभावों की अधिक विश्‍वसनीय जानकारी उपलब्ध हो पाती है। जिनका मिलान करके योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक रोगियों को रोगमुक्त करने में सफल होते हैं।

3-रोगी समस्त लक्षणों की जानकारी अनिवार्य : होम्योपैथी में रोग के नाम का नहीं, बल्कि रोगी के मानसिक एवं शारीरिक लक्षणों का सर्वाधिक महत्व है। इसलिये योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक को रोगी के समस्त लक्षणों को जानने में अधिक से अधिक समय खर्चना चाहिये और रोगी को भी बेझिझक अपने सभी लक्षणों को विस्तार से बतला देना चाहिये। बेशक पूछे जाने वाले लक्षणों का रोगी की राय में रोग से कोई समम्बन्ध हो या नहीं।

4-रोग का नहीं रोगी का इलाज किया जाता है, अत: दवाई का नाम नहीं बताया जाता : होम्योपैथी में किसी खास रोग की कोई खास या पेटेंट दवाई नहीं होती है, बल्कि रोगी के सम्पूर्ण लक्षणों के आधार पर उपयुक्त दवाई का चयन किया जाता है, जो होम्योपैथिक चिकित्सक के लिए सबसे कठिन कार्य है, क्योंकि होम्योपैथी की रिपर्टरी (लक्षण कोष) में चक्कर आने के लिये 274, मतली के लिये 258, पेट दर्द के लिये 186, सिरदर्द के लिये 242 दवाईयों का उल्लेख है। इनमें से रोगी और दवाई के लक्षणों का मेल बिठाकर होम्योपैथिक चिकित्सक द्वारा सही दवाई का चयन किया जाता है। इसीलिये होम्योपैथी में कहा जाता है कि ‘‘हम रोग का नहीं रोगी का इलाज करते हैं।’’ यही कारण है कि होम्योपैथिक चिकित्सक द्वारा रोगी को दवाई का नाम नहीं बताया जाता है।

5-दवाईयों का सेवन और रखरखाव : होम्योपैथिक दवाईयों के सेवन से पूर्व अपने मुंह और जीभ को अच्छी तरह से कुल्ला करके साफ करें और फिर होम्योपैथिक दवाईयों का सेवन करें। होम्योपैथिक दवाईयों के सेवन करने के कम से 20-30 मिनट तक रोगी को कुछ भी खाना या पीना नहीं चाहिये। दवाईयों का खुश्बू और बदबू वाली जगह से दूर रखना चाहिये।